हिल हुल परी और गुंजार-कक्ष का रहस्य की कहानी

 

हिल हुल परी और गुंजार-कक्ष का रहस्य की कहानी


हिल हुल परी और गुंजार-कक्ष का रहस्य
(एक अद्भुत, रहस्यमयी और जादुई लम्बी कहानी)

बहुत समय पहले, परियों के देश अंबरलोक में एक सुन्दर और शक्तिशाली परी रहती थी — उसका नाम था हिल हुल परी। उसके पंख मोतियों की तरह चमकते थे और जब वह उड़ती थी, तो उसके पंखों से ऐसी मधुर ध्वनि निकलती थी जैसे पहाड़ों में कोई जादुई घंटी बज उठी हो। हिल हुल परी को पूरे अंबरलोक में “स्वर-रक्षक” कहा जाता था, क्योंकि उसके पास ऐसी शक्ति थी जिससे वह किसी भी बुरी ध्वनि या शापित गुंजार को शांत कर सकती थी।

लेकिन एक दिन अंबरलोक में एक रहस्यमयी गुंजार गूंज उठी — वह ध्वनि ऐसी थी जो सुनने वाले के दिल में डर और अंधकार भर देती थी। यह गुंजार किसी अज्ञात स्थान से आती थी, जिसे परियाँ “गुंजार-कक्ष” कहती थीं। यह कक्ष एक प्राचीन गुफा में छिपा था, जो सुनसान पर्वतों के भीतर स्थित था। कहा जाता था कि वहाँ कभी ध्वनि-जादूगर रौरव ने अपनी आत्मा को कैद कर लिया था, और अब वही अपनी गूंज से लोक को डराने लगा था।

पहला अध्याय: गुंजार की पहली पुकार

एक रात जब हिल हुल परी सितारों के बीच उड़ रही थी, उसने देखा कि अंबरलोक के फूल मुरझा रहे हैं, और झरनों की मीठी लहर अब भयावह स्वर में बदल गई है। उसने अपनी जादुई वीणा उठाई और ध्वनि को समझने की कोशिश की। तभी वीणा ने स्वयं बोल उठी —
गुंजार-कक्ष जाग उठा है, रौरव लौट आया है।

यह सुनकर हिल हुल परी का मन काँप उठा। उसने तुरंत अपनी गुरु ध्वनि माता सुरेश्वरी के पास जाकर कहा,
“माता, गुंजार-कक्ष खुल गया है। मैं उसे बंद करने जाऊँगी।”

सुरेश्वरी ने चेताया, “हिल हुल, वह स्थान आवाज़ों का नहीं, आत्माओं का घर है। वहाँ हर ध्वनि तुम्हारे विरुद्ध हो जाएगी।”
लेकिन हिल हुल परी अडिग थी — “यदि मैं नहीं गई, तो अंबरलोक सदा के लिए मौन हो जाएगा।”

दूसरा अध्याय: मौन-पथ की यात्रा

हिल हुल परी ने अपने साथ तीन चीज़ें लीं —

नाद-मणि, जो उसकी आवाज़ को शुद्ध रखती थी।

ध्वनि-वीणा, जिससे वह हर स्वर को नियंत्रित कर सकती थी।

नीलवायु का पंख, जो उसे मौन के पार उड़ा सकता था।

वह सुनसान पर्वतों की ओर उड़ चली। रास्ते में उसे शांत झील मिली, जहाँ पानी में उसकी परछाई नहीं दिखी। तभी एक स्वर उभरा, “तुम गुंजार-कक्ष की ओर क्यों जा रही हो, परी?”

हिल हुल ने देखा — झील से प्रतिध्वनि आत्मा निकल रही थी।
उसने कहा, “मुझे रौरव की गूंज को रोकना है।”

प्रतिध्वनि आत्मा मुस्कुराई, “तो पहले अपनी ही आवाज़ को हराओ, तभी तुम उसकी गूंज को जीत पाओगी।”

यह कहकर उसने हिल हुल की ही आवाज़ लेकर मंत्र फेंका — और वहाँ दो हिल हुल परियाँ खड़ी हो गईं, एक असली और एक उसकी ध्वनि-छाया! दोनों में ऐसी लड़ाई हुई जिसमें शब्दों का तूफ़ान उठ गया।

हिल हुल ने अपनी वीणा से ‘शांति स्वर’ बजाया, जिससे उसकी असली आत्मा चमक उठी और छाया विलीन हो गई। प्रतिध्वनि आत्मा ने सिर झुकाया, “तुमने स्वयं को पहचान लिया — अब गुंजार-कक्ष तुम्हारे लिए खुलेगा।”

तीसरा अध्याय: गुंजार-कक्ष का द्वार

सुनसान पर्वत के हृदय में एक विशाल गुफा थी, जिसके द्वार पर आवाज़ की लहरें कांप रही थीं। जैसे ही हिल हुल परी पास पहुँची, द्वार ने एक भयानक ध्वनि निकाली —
“कौन है जो मौन को तोड़ने आया है?”

हिल हुल ने उत्तर दिया,
“मैं हिल हुल परी हूँ — अंबरलोक की स्वर-रक्षक। मैं उस गूंज को शांत करने आई हूँ जो तुम्हारे भीतर बंद पड़ी है।”

द्वार खुल गया, और भीतर से नीली रोशनी और अनगिनत ध्वनियों की परछाइयाँ निकलने लगीं। दीवारों पर पुरानी परियों की प्रतिध्वनियाँ कैद थीं — कोई हँस रही थी, कोई रो रही थी।

कक्ष के मध्य में रौरव ध्वनि-जादूगर का क्रिस्टल पड़ा था। उसकी आँखों से गूंज की ज्वाला फूट रही थी।

चौथा अध्याय: रौरव का श्राप

रौरव ने कहा,
“हिल हुल, तुम ध्वनि की बच्ची हो, पर मैं स्वयं नाद का जनक हूँ। क्या तुम मुझे मौन कर सकोगी?”

हिल हुल ने वीणा उठाई और बोली,
“जादूगर, ध्वनि विनाश नहीं करती — वह सृजन करती है। तुम्हारी गूंज डर से नहीं, प्रेम से थमेगी।”

फिर उसने वीणा पर “शांत नाद मंत्र” बजाया।
गुंजार गूंज उठी, रौरव चिल्लाया — “नहीं! यह स्वर मुझे मिटा देगा!”

लेकिन उसी क्षण हिल हुल ने नाद-मणि को रौरव के क्रिस्टल में रख दिया। उसकी गूंज एक मधुर गीत में बदल गई — जो कभी डरावना था, अब वह lullaby बन गया।

रौरव की आत्मा शांति में विलीन हो गई, और गुंजार-कक्ष की दीवारों से ध्वनियाँ मुक्त होकर अंबरलोक लौट आईं।

पाँचवाँ अध्याय: नये स्वर का उदय

जब हिल हुल परी लौटी, तो अंबरलोक फिर से गाने लगा।
झरने झूमे, फूलों ने गुनगुनाया, और सुरेश्वरी माता ने कहा,
“तुमने नाद का रहस्य जान लिया, हिल हुल — यह कि हर डर के पीछे भी एक संगीत छिपा होता है।”

उस दिन से गुंजार-कक्ष एक पवित्र स्थान बन गया, जहाँ परियाँ अपनी आवाज़ों का अभ्यास करती थीं। और हिल हुल परी को “स्वर की रानी” कहा जाने लगा।

वह जान चुकी थी —

“ध्वनि से जन्मा भय, केवल ध्वनि से ही शांत होता है।”

और तब से जब भी अंबरलोक में कोई गूंज उठती है, परियाँ जान जाती हैं —
हिल हुल परी कहीं न कहीं अपनी वीणा बजा रही है। 🎶✨

क्या आप चाहेंगे कि मैं इस कहानी का दूसरा भाग भी लिखूँ — जिसमें हिल हुल परी गुंजार-कक्ष के बाद “मौन लोक” में प्रवेश करती है जहाँ कोई ध्वनि नहीं होती?

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