आकाश परी साधना मंत्र | Aakash Pari ki Sadhana Mantra

यह कहानी “आकाश परी साधना मंत्र” के रहस्यमयी रहस्य और उसकी दिव्य शक्ति की गाथा है—एक ऐसी कथा जो साधक की आत्मा को आकाश की ऊँचाइयों तक पहुँचा देती है। 🌌

🌠 आरंभ – आकाश की पुकार

बहुत समय पहले हिमालय की एक गुप्त गुफा में “ऋषि तत्वप्रभ” नामक एक महान साधक निवास करते थे। वे ब्रह्मज्ञान में निपुण थे, परंतु उनका हृदय एक अधूरी साधना की खोज में था—आकाश तत्व की अधिष्ठात्री देवी, जिसे लोक में आकाश परी कहा जाता है।
कहा जाता था कि यह परी स्वयं ब्रह्मांड की सीमा से परे रहती है, और उसे बुलाने वाला साधक संसार के सभी तत्त्वों पर अधिकार पा सकता है।

ऋषि ने अनेक वर्ष ध्यान किया, पर कोई सफलता नहीं मिली। तभी एक रात्रि उन्होंने स्वप्न में एक नीली ज्योति देखी—उस ज्योति से एक मधुर स्वर गूँजा,

“हे साधक, जो मन आकाश समान विस्तृत हो जाए, वही मुझे पा सकता है। मेरी साधना न भूमि पर होती है, न जल में, न अग्नि में—वह होती है हृदय के शून्य में।”

🌬️ मंत्र का रहस्य

जागने पर ऋषि ने अनुभव किया कि उनके कानों में कोई दिव्य ध्वनि गूँज रही है। वही था आकाश परी साधना मंत्र, जो इस प्रकार था:

“ॐ ह्रीं आकाशेश्वर्यै नमः। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं आकाशदेव्यै प्रकट्य प्रकट्य नमः॥”

यह मंत्र केवल उच्चारण से नहीं, बल्कि “भाव” से जपने पर प्रभाव देता था।
साधक को इस मंत्र का जप पूर्णिमा की रात, खुले आकाश के नीचे, उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना होता था।
कहा जाता है कि 21 रात्रियों के जप के बाद जब साधक का मन बिल्कुल शून्य हो जाता है, तभी आकाश परी प्रकट होती है।

🌌 आकाश परी का दर्शन

ऋषि तत्वप्रभ ने इस मंत्र का जप प्रारंभ किया।
पहले दिन उन्हें केवल एक ठंडी हवा का स्पर्श महसूस हुआ।
सातवें दिन आकाश में नीली रोशनी की लहरें चमकीं।
इक्कीसवें दिन, जब उन्होंने नेत्र बंद किए, तो पूरे वातावरण में नीलवर्ण प्रकाश फैल गया, और एक स्वर आया—

“ऋषि तत्वप्रभ, तुमने आकाश की सीमाओं को पार कर लिया है।”

उन्होंने नेत्र खोले, और उनके सामने आकाश परी खड़ी थी—उसके केश तारों से बने थे, और उसकी आँखों में ब्रह्मांड घूम रहा था।

आकाश परी ने कहा,

“जो साधक अपने मन को आकाश के समान विस्तार दे, वही मुझसे एक हो सकता है। मैं तुम्हें यह वर देती हूँ कि तुम जहाँ देखो, वहाँ ब्रह्म की व्याप्ति देख सको।”

ऋषि को उस दिन यह ज्ञान हुआ कि आकाश परी की साधना का अर्थ किसी देवी को बुलाना नहीं, बल्कि अपने भीतर की अनंतता को जाग्रत करना है।

🌠 आज की साधना परंपरा

आज भी कुछ तांत्रिक और योगी हिमालय, अरावली या विन्द्याचल की गुफाओं में इस साधना को करते हैं।
वे कहते हैं कि यदि साधक 21 दिनों तक इस मंत्र का जप “शांत आकाश” के नीचे करे, तो उसके मन की सीमाएँ टूट जाती हैं।
वह हवा, प्रकाश और विचार की सूक्ष्म लहरों को अनुभव करने लगता है—यही आकाश परी का आशीर्वाद है।

🌌 साधना का रहस्य सार

तत्वअर्थमंत्रॐ ऐं ह्रीं क्लीं आकाशदेव्यै नमःसमयपूर्णिमा की रातस्थानखुले आकाश तले, शांत पर्वतीय स्थानअवधि21 रात्रियाँफलअंतर्ज्ञान, ब्रह्मज्ञान, आकाशीय दृष्टि

Aakash Pari ki Sadhana Mantra


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