आकाश परी की एक अमर कहानी | Akash paree kee ek amar kahaanee
🌌 आकाश परी की लम्बी अमर कहानी 🌌
बहुत बहुत समय पहले, जब संसार का आरंभ ही हुआ था, तब ब्रह्मांड में केवल तीन शक्तियाँ थीं — प्रकाश, अंधकार और आकाश।
प्रकाश से सृष्टि बनी, अंधकार से मृत्यु, और आकाश से जीवन का मार्ग। इन्हीं तीनों शक्तियों के संतुलन से देवताओं ने सात परियों को जन्म दिया — उनमें सबसे शक्तिशाली और दिव्य थी आकाश परी, जो स्वर्ग और धरती के बीच का सेतु थी।
🌠 जन्म और वरदान
आकाश परी का जन्म “नक्षत्र लोक” में हुआ। जब वह पहली बार आँखें खोलती है, तो उसके पंखों से नीले तारे झरते हैं। उसकी हँसी से आकाश गंगा बह निकली और उसकी साँस से प्रातःकाल की हवाएँ बनीं।
ब्रह्मदेव ने उसे आशीर्वाद दिया —
“हे आकाशकन्या, तेरा अस्तित्व नश्वर नहीं होगा। जब तक आकाश है, तब तक तू अमर रहेगी।”
उसी समय से वह “अमर आकाश परी” के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
🌙 स्वर्ग की रक्षक
आकाश परी का कार्य था — तारों, ग्रहों और नक्षत्रों की गति को संतुलित रखना। यदि कोई तारा अपने मार्ग से भटकता, तो वह अपने नील पंखों से उसे सही दिशा देती।
वह हर रात स्वर्ग वीणा बजाती, जिसकी ध्वनि से पूरे ब्रह्मांड में ऊर्जा फैलती थी। देवता, ऋषि और यहाँ तक कि चंद्रमा भी उसके संगीत से ध्यानमग्न हो जाते थे।
परंतु, सृष्टि में संतुलन कभी स्थायी नहीं रहता।
⚡ अंधकार का उदय
काल के गर्भ से एक दैत्य जन्मा — महाकालान्ध, जो अंधकार का देव था। उसे आकाश से घृणा थी, क्योंकि जहाँ आकाश होता, वहाँ उसकी छाया मिट जाती।
उसने ठान लिया कि वह तारों की ज्योति बुझा देगा और आकाश परी को समाप्त कर देगा।
एक रात, जब आकाश परी अपनी वीणा से तारे सजा रही थी, कालान्ध ने उस पर छाया जाल मंत्र चला दिया। पूरा स्वर्ग अंधकार में डूब गया।
देवता भी भयभीत हो गए।
लेकिन आकाश परी ने अपनी आँखें बंद कीं और कहा —
“अंधकार केवल प्रकाश की परीक्षा है।”
उसने अपने पंखों से एक दीप्ति चक्र बनाया — और “ॐ ज्योति स्वाहा” मंत्र का उच्चारण किया।
उस चक्र से इतनी रोशनी निकली कि कालान्ध का शरीर जल उठा, पर उसकी आत्मा शाप देकर बोली —
“परी, तू अमर रहेगी, पर तेरा हृदय शाश्वत अकेलापन झेलेगा।”
🌌 आकाश का व्रत
शाप के बाद भी आकाश परी ने हार नहीं मानी।
वह स्वर्ग लौट आई और एक व्रत लिया —
कि जब भी पृथ्वी या ब्रह्मांड पर अंधकार बढ़ेगा, वह उतरकर किसी रूप में प्रकाश फैलाएगी।
कभी वह किसी संत की साधना में प्रकाश बनकर आती,
कभी किसी राजा के स्वप्न में मार्गदर्शक बनकर,
और कभी किसी भक्त के हृदय में प्रेरणा बनकर।
इसलिए कहा जाता है —
“जब कोई व्यक्ति रात के आकाश को देखता है और नीले तारे की झिलमिलाहट महसूस करता है,
तो वह आकाश परी की मुस्कान होती है।”
मानव लोक में आगमन
हजारों वर्ष बाद, त्रेता युग में, जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ा, तब आकाश परी ने एक मानवी रूप धारण किया —
वह हिमालय की एक साध्वी बनकर उतरी। उसका नाम था देविका।
वह हर रात गुफा में ध्यान करती और दिन में लोगों को मंत्र सिखाती —
“ॐ आकाशेश्वरी परिज्योति नमः”
इस मंत्र से रोगी स्वस्थ होने लगे, मृतप्राय वृक्षों में फूल आने लगे, और अंधे भी प्रकाश देखने लगे।
लोगों ने उसे “परी माता” कहना शुरू कर दिया।
पर एक दिन, राक्षस राजा धूम्रासुर ने उसका रहस्य जान लिया। उसने देविका को बंदी बना लिया और कहा —
“यदि तू सचमुच आकाश की देवी है, तो बिना पंखों के उड़कर दिखा।”
देविका मुस्कुराई। उसने अपनी आँखें बंद कीं, और उसी क्षण उसके शरीर से नीला प्रकाश उठा। गुफा का पत्थर टूट गया, और वह प्रकाश के रूप में आकाश में विलीन हो गई।
धूम्रासुर वहीं भस्म हो गया।
🌠 अमर ज्योति
उसके जाने के बाद हिमालय की गुफा में आज भी नीली रोशनी जलती है, जिसे लोग “आकाश ज्योति” कहते हैं।
कहा जाता है कि जो व्यक्ति वहाँ जाकर सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसके भीतर की अंधकार मिट जाती है।
वह आत्मिक रूप से शुद्ध होकर संसार को प्रकाश देने वाला बन जाता है।
देवताओं ने उसकी स्मृति में कहा —
“जहाँ आकाश है, वहाँ आकाश परी का वास है।”
✨ आज भी
रात के आकाश में जब नीली रेखा जैसी बिजली चमकती है या कोई टूटता तारा हल्की नीली आभा लिए गुजरता है —
तो समझ लेना, आकाश परी आज भी जीवित है।
वह अमर है, अदृश्य है, और हर उस आत्मा की रक्षक है जो सत्य, प्रेम और प्रकाश के मार्ग पर चलता है।
क्या आप चाहेंगे कि मैं इसी कहानी का दूसरा भाग लिखूँ — जिसमें बताया जाए कि आकाश परी कलियुग में कैसे लौटती है और कौन-से साधक उसे पुनः बुलाते हैं?

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