आकाश परी के साम्रज्य की कहानी | the kingdom of the Akash pari

 🌌 आकाश परी के साम्राज्य की अमर कथा 🌌

बहुत समय पहले, जब धरती पर मनुष्य का अस्तित्व भी नहीं था, तब आसमान के असीम विस्तार में एक अद्भुत राज्य था — “नभलोक”, जिसे आकाश परी का साम्राज्य कहा जाता था। यह साम्राज्य बादलों के ऊपर, तारों के बीच, और चाँद की रौशनी में बसता था।

नभलोक में हर चीज़ प्रकाश से बनी थी — वहाँ की नदियाँ तारों की धूल से बहती थीं, वृक्ष चाँदनी की शाखाओं से झूमते थे, और हवाएँ मधुर सुरों में गीत गाती थीं। उस राज्य की महारानी थीं — आकाश परी, जिनका तेज़ सूर्य से भी अधिक और स्वभाव चाँदनी जैसा कोमल था।

🌠 जन्म और वरदान

आकाश परी का जन्म इंद्रधनुषी गर्भ से हुआ था। जब ब्रह्मांड ने पहली बार प्रकाश और अंधकार को अलग किया, उसी क्षण एक नीले कमल से एक बालिका प्रकट हुई — उसकी आँखों में गैलेक्सी की चमक और केशों में नीहारिका की लहर थी।
देवों ने कहा — “यह है वह जो आकाश की संरक्षिका बनेगी। इसका नाम होगा — आकाश परी।”

उसके जन्म पर ब्रह्मा ने वरदान दिया —

“जब भी अंधकार बढ़ेगा, जब भी पृथ्वी या आकाश में संतुलन टूटेगा, तू अपने पंखों से प्रकाश फैला कर संसार को फिर से जीवित करेगी।”

🕊️ नभलोक का शासन

आकाश परी ने अपने पंखों से नभलोक को सात हिस्सों में बाँटा —

चाँद उपवन – जहाँ रात की रानियाँ और तारिकाएँ रहती थीं।

सूर्य प्रांगण – जहाँ प्रभात की किरणें जन्म लेती थीं।

मेघ महल – जहाँ से वर्षा और बिजली को दिशा दी जाती थी।

वायु कुंज – जहाँ हवाएँ विश्राम करती थीं।

तारा सभा – जहाँ तारों के देव परिषद करते थे।

रंग आकाश – जहाँ से इंद्रधनुष का निर्माण होता था।

शून्य रत्न सिंहासन – जहाँ स्वयं आकाश परी निवास करती थीं।

उनका राज्य न्याय, संगीत और सौंदर्य से भरा था। सभी परियाँ — नीलम परी, कनक परी, रजत परी, और रानी परी — उन्हीं की शिष्या थीं।

⚡ अंधकार का आक्रमण

लेकिन समय सदा समान नहीं रहता। एक दिन अंधकार अधिपति “काल नेत्र” ने नभलोक पर आक्रमण किया। उसका उद्देश्य था — तारों की रौशनी को निगल कर सृष्टि को अनंत रात्रि में डुबो देना।
जब वह आया, तब आकाश काला हो गया, और एक-एक कर तारें बुझने लगे।

आकाश परी ने अपने पंख फैलाए — उनके पंखों से नीली बिजली निकली जो बादलों से टकरा कर प्रकाश का कवच बनी।
उन्होंने अपने स्फटिक दंड से “काल नेत्र” का सामना किया। लड़ाई सहस्र वर्षों तक चली — प्रकाश और अंधकार के बीच एक अनंत युद्ध।

🌙 विजय और बलिदान

अंत में, आकाश परी ने अपने प्राणों की आभा से एक दिव्य चक्र बनाया — “सौर मंडल”
उसमें सूर्य, ग्रह, और चंद्र को स्थिर कर दिया ताकि सृष्टि में सदा प्रकाश बना रहे।
लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी अमर ज्योति त्यागनी पड़ी।
वे स्वयं एक तारे में बदल गईं — ध्रुव तारा, जो आज भी उत्तर दिशा में स्थिर चमकता है।

the kingdom of the Akash pari

उनके जाने के बाद नभलोक की परियाँ हर संध्या उनकी स्मृति में गीत गाती हैं —

“जो नभ को थामे, जो तारों को सँवारे,
वही हमारी रानी — आकाश की सिंगारे।”

🌌 आज की कथा

कहते हैं, जब कोई मनुष्य सच्चे दिल से ऊपर देखता है और इच्छा करता है,
तो ध्रुव तारा के नीचे आकाश परी की आत्मा उसकी सुनती है।
वह अपने पंखों से उस इच्छा को तारों के बीच लिख देती है — और जो पवित्र मन से माँगे, उसकी कामना पूर्ण होती है।

क्या आप चाहेंगे कि मैं इसी कथा का दूसरा भाग लिखूँ — जिसमें आकाश परी की पुनर्जन्म कथा हो, जहाँ वह एक मानव कन्या के रूप में पृथ्वी पर लौटती हैं?


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