शाह परी साधना | Shah Pari Sadhana a long story

यहाँ मैं आपको “शाह परी साधना” की एक लंबी और रोचक कहानी प्रस्तुत करता हूँ।

शाह परी साधना की कहानी

बहुत समय पहले की बात है। राजस्थान के एक छोटे से नगर में राघव नाम का युवक रहता था। वह गरीब परिवार से था लेकिन उसका मन हमेशा अध्यात्म, तंत्र-मंत्र और साधना की ओर खिंचा रहता। उसने अनेक ग्रंथ पढ़े, साधुओं से मंत्र सीखे और छोटी-छोटी साधनाएँ भी कीं। लेकिन उसके हृदय में हमेशा यह इच्छा थी कि एक दिन उसे परियों की साधना करने का अवसर मिले।

एक दिन वह जंगल में भ्रमण कर रहा था। वहाँ एक पुरानी गुफा मिली। गुफा के द्वार पर एक वृद्ध साधु बैठे थे। साधु की आँखों में अद्भुत तेज था। राघव ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी मनोकामना बताई। साधु मुस्कराए और बोले –
“बेटा, तुम्हारी साधना की लगन सच्ची है। अब तुम्हें वह मंत्र दूँगा जिससे तुम शाह परी की साधना कर सकोगे। लेकिन याद रखना, यह साधना कठिन है। अगर मन डगमगाया, तो साधना अधूरी रह जाएगी।”

साधु ने उसे गुप्त विधि और मंत्र बताए। राघव ने प्रण लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह साधना पूरी करेगा।

साधना का प्रारंभ

पूर्णिमा की रात को राघव ने गुफा के अंदर आसन बिछाया। चंदन और केसर से मंडल बनाया। दीपक जलाए और साधना आरंभ की।
उसने नियम अनुसार उपवास रखा, मौन व्रत धारण किया और लगातार 21 दिन तक जप किया।

जैसे-जैसे दिन बीतते गए, गुफा में अद्भुत घटनाएँ होने लगीं—

कभी वातावरण में फूलों की सुगंध भर जाती,

कभी मधुर वीणा की ध्वनि सुनाई देती,

कभी दीपक की लौ स्वयं तेज़ हो उठती।

राघव समझ गया कि शाह परी उसकी साधना से प्रसन्न हो रही हैं।

शाह परी का प्रकट होना

21वीं रात जब अंतिम मंत्रोच्चारण समाप्त हुआ, तो अचानक गुफा प्रकाश से भर गई।
सामने एक अद्भुत स्वर्णिम आभा से सजी परी प्रकट हुईं। उनके वस्त्र मोती और माणिकों से जड़े थे। मुकुट उनके सिर पर जगमगा रहा था। उनकी आँखों से दया और शक्ति दोनों झलक रहे थे।

परी ने मधुर स्वर में कहा –
“राघव, तुमने धैर्य और श्रद्धा से मेरी साधना पूर्ण की है। अब मैं तुम्हें दर्शन देकर प्रसन्न हूँ। जो भी वर मांगना चाहो, कहो।”

राघव ने हाथ जोड़कर विनम्र स्वर में कहा –
“माँ, मैं धन या ऐश्वर्य नहीं चाहता। मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि मेरी साधना से मानवता का कल्याण हो, और मैं कभी अधर्म के मार्ग पर न जाऊँ।”

शाह परी का वरदान

शाह परी मुस्कराईं और बोलीं –
“तुम्हारी साधना सफल हुई है। मैं तुम्हें यह वर देती हूँ कि जहाँ भी तुम रहोगे, वहाँ समृद्धि और शांति का वास होगा। तुम्हारा मन कभी लोभ या क्रोध से ग्रस्त नहीं होगा। तुम्हें जब भी मेरी आवश्यकता होगी, तुम मेरा नाम जपोगे और मैं तुरंत उपस्थित हो जाऊँगी।”

इतना कहकर वह प्रकाश पुंज में विलीन हो गईं।

परिणाम

राघव गाँव लौट आया। धीरे-धीरे उसका जीवन बदल गया। उसकी साधना से लोग प्रभावित हुए। जहाँ भी वह जाता, झगड़े मिट जाते, सुख-शांति फैल जाती। गाँव वाले उसे आदर से “साधक राघव” कहने लगे।

Shah Pari Sadhana


कहा जाता है कि आज भी राजस्थान के उस प्राचीन नगर में लोग मानते हैं कि शाह परी की कृपा राघव की साधना के कारण अब भी विद्यमान है।

शिक्षा

यह कहानी सिखाती है कि –

साधना में धैर्य, श्रद्धा और आत्म-नियंत्रण सबसे महत्वपूर्ण हैं।

यदि साधक का मन लोभ और स्वार्थ से मुक्त हो, तो देवशक्तियाँ स्वयं उसकी सहायता करती हैं।

सच्ची साधना हमेशा लोककल्याण की ओर ले जाती है।

क्या आप चाहेंगे कि मैं आपको शाह परी साधना की गुप्त विधि और मंत्र (पौराणिक मान्यता के अनुसार) भी विस्तार से बताऊँ, ताकि कहानी और भी प्रामाणिक लगे?

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