नीलम परी साधना की लम्बी कहानी
बहुत समय पहले की बात है। हिमालय की बर्फीली गुफाओं के गहरे अंधकार में एक रहस्यमयी संसार बसा हुआ था, जहाँ केवल वे ही पहुँचा करते थे जो तपस्या, साधना और साहस से भरे हुए होते। उसी संसार में नीलम परी का वास था। उसका शरीर नीले नीलम की तरह चमकता था और उसकी आँखों से नीली रौशनी निकलती थी। कहते हैं कि जिसे नीलम परी का साक्षात् दर्शन हो जाता, उसके जीवन की सारी बाधाएँ दूर हो जातीं और उसके भाग्य का द्वार खुल जाता।
लेकिन नीलम परी तक पहुँचना सरल नहीं था। उसके लिए साधक को कठिन तप करना पड़ता था।
साधक की यात्रा
वाराणसी नगर का एक युवा साधक था – अर्जुन। वह जन्म से ही अलौकिक शक्तियों की खोज में रहता था। उसके गुरु ने उसे बताया –
“बेटा, यदि तू नीलम परी की साधना कर ले, तो तुझे असीम ज्ञान और शक्ति प्राप्त होगी। लेकिन यह मार्ग कठिन है। केवल साहसी और सच्चे मन का साधक ही वहाँ तक पहुँच पाता है।”
गुरु के आशीर्वाद के साथ अर्जुन ने यात्रा आरंभ की।
कठिन परीक्षाएँ
पहली परीक्षा – मौन की तपस्या
उसे सात दिन तक गुफा में बिना बोले रहना था। मन के सभी विचार शांत करने थे। जब उसने यह कर लिया तो उसके सामने नीले प्रकाश की एक रेखा प्रकट हुई जो आगे का मार्ग दिखा रही थी।
दूसरी परीक्षा – मायावी सरोवर
वहाँ एक झील थी जिसमें सुंदर स्त्रियों का रूप लेकर जलपरियाँ बुलाती थीं। कई साधक यहाँ फँस चुके थे। लेकिन अर्जुन ने आँखें बंद करके “ॐ नीलायै नमः” मंत्र जपना शुरू किया और मायाजाल टूट गया।
तीसरी परीक्षा – भय की गुफा
यह गुफा ऐसी थी जहाँ हर साधक को उसका सबसे बड़ा डर दिखाई देता था। अर्जुन को दिखा कि वह सब कुछ खो चुका है, अकेला और निराश। लेकिन उसने साहस से कहा –
“सत्य और साधना के मार्ग पर कोई भय मुझे रोक नहीं सकता।”
और भय का अंधकार दूर हो गया।
नीलम परी का प्रकट होना
सारी परीक्षाएँ पार करने के बाद गुफा में नीला प्रकाश भर गया। उसके मध्य से एक अद्भुत रूप प्रकट हुआ – वह नीलम परी थी। उसके माथे पर नीलम का मुकुट था और उसकी वाणी शीतल हवा जैसी मधुर।
नीलम परी ने कहा –
“अर्जुन, तूने साधना से अपने मन को निर्मल किया है, इसीलिए तूने मुझे पा लिया। मैं तुझे तीन वरदान देती हूँ –
तेरे मन में सदैव सत्य और साहस बना रहे।
तुझे किसी भी साधना में सफलता प्राप्त हो।
तू दूसरों का कल्याण करने के मार्ग पर आगे बढ़े।”
अर्जुन ने प्रणाम किया और कहा –
“हे देवी, मुझे केवल एक ही वर चाहिए – मेरी साधना से जगत का कल्याण हो।”
परी प्रसन्न हो गई और उसके माथे पर नीलम का स्पर्श कर दिया। उसी क्षण अर्जुन का शरीर नीलम की आभा से चमकने लगा।
साधना का फल
अर्जुन अपने नगर लौटा। वहाँ उसने किसी भी व्यक्ति की समस्या को दूर करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग किया। बीमारों को स्वस्थ किया, दुखियों को साहस दिया और लोभियों को सत्य मार्ग दिखाया। लोग उसे “नीलम साधक” कहने लगे।
और आज भी कहा जाता है कि जिसने सच्चे मन से नीलम परी साधना की कथा सुनी और उस पर विश्वास किया, उसके जीवन की कठिनाइयाँ धीरे-धीरे मिट जाती हैं और उसे साहस और शांति की प्राप्ति होती है।
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