चांदनी परी मंत्र का रहस्य — एक लम्बी रहस्यमयी कथा 🌕
बहुत समय पहले, हिमालय की चाँदी सी बर्फ़ से ढकी एक ऊँची चोटी पर एक गुप्त घाटी थी — चंद्रप्रभा उपत्यका। वहाँ हर पूर्णिमा की रात जब चाँद अपने पूरे तेज़ में होता, तब आकाश से एक श्वेत आलोक उतरता, और उसी से प्रकट होती थी — चांदनी परी। उसकी आँखें जैसे दर्पण में झिलमिलाता चाँद, बाल जैसे रजत धारा, और उसकी उपस्थिति से पूरी घाटी में दुधिया प्रकाश फैल जाता।
कहा जाता है कि चांदनी परी कोई साधारण परी नहीं थी — वह चंद्रलोक की रक्षक थी। उसका अस्तित्व “चांदनी मंत्र” से बंधा हुआ था। यह मंत्र ब्रह्मा के अमृत अक्षरों से रचा गया था, और इसका रहस्य सिर्फ़ वही जान सकता था जिसके हृदय में पूर्ण पवित्रता और निःस्वार्थ प्रेम हो।
🌙 पहला अध्याय — राजकुमार आर्यन की खोज
राजकुमार आर्यन, सूर्यवंशी राज्य का वीर योद्धा था। एक युद्ध में हारने के बाद उसने अपने राज्य को अंधकार में डूबते देखा। उसे कहा गया कि यदि वह चांदनी परी का मंत्र प्राप्त कर ले, तो अपने राज्य को पुनः प्रकाश में ला सकता है।
वह निकल पड़ा बर्फ़ीले पहाड़ों की ओर — सात रातें और सात दिन उसने बिना विश्राम के यात्रा की। आठवीं रात पूर्णिमा की थी, जब उसने देखा — एक झील में चाँद का प्रतिबिंब अचानक जीवंत हो उठा और उससे प्रकट हुई चांदनी परी।
उसकी आवाज़ मृदुल थी —
“जो सत्य की खोज में चलता है, उसे चाँद की शीतलता परखती है, न कि अग्नि की तपिश।”
आर्यन ने प्रणाम किया और पूछा, “देवी, मैं आपके मंत्र का रहस्य जानना चाहता हूँ ताकि अपने राज्य को बचा सकूँ।”
चांदनी परी मुस्कराई, “मंत्र पाने के लिए पहले हृदय का चाँद जाग्रत करना होगा। जब तुम्हारा मन निर्मल होगा, तब ही ‘चंद्राक्षर’ प्रकट होंगे।”
🌕 दूसरा अध्याय — तीन परीक्षाएँ
चांदनी परी ने आर्यन को तीन परीक्षाएँ दीं —
सत्य की परीक्षा:
उसे एक झूठे दर्पण के कक्ष में भेजा गया, जहाँ हर प्रतिबिंब उसे लालच और वैभव दिखाता। पर आर्यन ने अपने भीतर झाँका और कहा — “मेरा लक्ष्य केवल प्रकाश है।” झूठे प्रतिबिंब टूट गए, और प्रथम अक्षर प्रकट हुआ — “चं”।
त्याग की परीक्षा:
एक जादुई घाटी में उसे सोने की वर्षा दिखाई दी। पर हर सोने के कण के पीछे किसी गरीब का आँसू था। उसने स्वर्ण को अस्वीकार किया। दूसरा अक्षर प्रकट हुआ — “द”।
करुणा की परीक्षा:
अंतिम परीक्षा में उसे एक घायल हंस मिला जो बोल नहीं पा रहा था। आर्यन ने अपने प्राणों की आभा उस हंस को दी। तभी तीसरा अक्षर प्रकट हुआ — “नी”।
जब तीनों अक्षर एक हुए — “चं-द-नी”, तब आकाश में चांदनी परी फिर प्रकट हुई।
🌔 तीसरा अध्याय — मंत्र का उद्घाटन
चांदनी परी ने कहा,
“अब सुनो चांदनी मंत्र का रहस्य —
यह कोई शब्द नहीं, यह प्रेम और प्रकाश का संकल्प है।
जब तुम अपने भीतर के अंधकार को क्षमा कर देते हो,
तभी तुम्हारे शब्द मंत्र बन जाते हैं।”
फिर उसने अपने हाथ से एक चंद्रकिरण उठाई और उसे आर्यन के हृदय में स्थापित कर दिया।
“अब तुम्हारे भीतर मेरा अंश है। जब भी तुम किसी अंधेरे में किसी के लिए दीप जलाओगे, वही मंत्र क्रियाशील होगा।”
🌙 चौथा अध्याय — चांदनी की विरासत
राजकुमार आर्यन लौटा तो उसके राज्य में उजाला फैल गया। न चमत्कार हुआ, न जादू — बल्कि लोगों के हृदयों में करुणा और प्रेम का दीप जल गया। यही था चांदनी परी के मंत्र का रहस्य — प्रकाश का संचार, न कि शक्ति का प्रदर्शन।
कहा जाता है कि आज भी जो साधक शुद्ध हृदय से चांदनी मंत्र का जाप करता है, उसे पूर्णिमा की रात हल्की चांदी-सी आभा अपने चारों ओर दिखाई देती है। वही संकेत है कि चांदनी परी अब भी आकाश से उसकी रक्षा कर रही है।
क्या आप चाहेंगे कि मैं इस कथा का अगला भाग लिखूँ — जिसमें बताया जाए कि आर्यन के बाद किसने चांदनी मंत्र को पुनः खोजा, और वह कैसे बदल गया “रजत साधना” में?

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