काली परी की साधना – एक साहस भरी कहानी
बहुत समय पहले की बात है। उत्तर भारत के घने जंगलों में, जहाँ दिन में भी अँधेरा छाया रहता था, वहीं एक छोटा-सा गाँव बसा था। उस गाँव के लोग रहस्यमयी शक्तियों और परियों की कथाएँ सुनाया करते थे। उन्हीं कथाओं में सबसे अधिक डर और रहस्य से भरी कहानी थी काली परी की।
गाँव वालों का कहना था कि काली परी अद्भुत शक्तियों से संपन्न थी। उसका रूप मोहक था, लेकिन उसकी आँखों में ऐसा तेज था कि देखने वाला भय से काँप उठता। कहते हैं कि वह केवल उन्हीं साधकों के सामने प्रकट होती थी जिनमें साहस, तपस्या और अदम्य धैर्य होता।
साधक का संकल्प
गाँव में एक युवक रहता था – विराज। बचपन से ही उसने काली परी की कथा सुनी थी। उसके मन में हमेशा यही इच्छा जागती रही कि वह साधना करके उस अद्भुत शक्ति को प्राप्त करे। लेकिन सब लोग उसे चेतावनी देते –
“विराज! यह साधना आसान नहीं। काली परी की कृपा प्राप्त करने के लिए तप, बल और साहस चाहिए। जो भयभीत हो गया, वह नष्ट हो गया।”
विराज ने निश्चय किया कि चाहे जो हो, वह साधना करेगा।
साधना की शुरुआत
गुरु के आशीर्वाद से वह गहन जंगल की ओर निकल पड़ा। उसने एक प्राचीन श्मशान के पास काली परी का स्थान चुना। वहाँ चारों ओर गहन अंधकार, उल्लू की आवाज़ें और चिताओं की राख थी। वीरता की परीक्षा का यही स्थान था।
विराज ने नियम बनाया—
41 दिन तक वह श्मशान में ही साधना करेगा।
रात के तीसरे प्रहर में विशेष मंत्रों का जाप करेगा।
भोजन केवल फल और जड़ी-बूटियों से करेगा।
रात दर रात, वह मंत्रोच्चार करता और अग्नि के चारों ओर बैठा साधना करता।
भय की परीक्षा
पहली ही रात से परीक्षाएँ शुरू हो गईं। कभी कंकाल हिलने लगे, कभी श्मशान की राख में से रहस्यमयी आकृतियाँ निकलने लगीं। विराज ने मन को स्थिर रखा।
बीसवीं रात को उसके सामने एक भयानक दृश्य आया—काले बादलों के बीच से काली परी की छाया प्रकट हुई। उसकी आवाज़ गूँजी—
“साधक! क्या तू सचमुच मेरे दर्शन चाहता है? क्या तू मेरे सामने अपने भय को त्याग देगा?”
विराज ने दृढ़ स्वर में कहा—
“हाँ, देवी! मैं भय से ऊपर उठकर आपकी साधना करना चाहता हूँ।”
अंतिम परीक्षा
इकत्तीसवीं रात को आकाश गर्जन से भर गया। अचानक अग्नि की लपटों में से काली परी का दिव्य रूप प्रकट हुआ। उसकी आँखें अंगारे जैसी चमक रही थीं। उसने कहा—
“साधक! यदि तू मेरी शक्ति चाहता है, तो अपना साहस सिद्ध कर। इस अग्नि से होकर निकल, अन्यथा पीछे हट जा।”
विराज ने बिना डरे अग्नि में प्रवेश किया। आश्चर्य! अग्नि ने उसे जलाया नहीं। वह अग्नि रूपी शक्ति में स्नान कर निकला। काली परी प्रसन्न हो उठी।
वरदान
काली परी ने कहा—
“हे साधक! तूने भय पर विजय पाई है। अब तू मेरे कृपा का पात्र है। जब-जब तुझे अन्याय से लड़ना होगा, मैं तेरे साथ रहूँगी। तुझे अंधकार में भी मार्ग दिखाऊँगी और तेरी रक्षा करूँगी।”
इसके बाद काली परी अदृश्य हो गई।
निष्कर्ष
विराज गाँव लौट आया। अब वह केवल साधारण युवक नहीं रहा, बल्कि साहस और शक्ति का प्रतीक बन गया। गाँव के लोग उसे आदर से देखते और कहते—
“यह वही है जिसने काली परी की साधना पूरी की और उसका आशीर्वाद पाया।”
उसकी कहानी यह सिखाती है कि भय केवल मन का बंधन है। जो इसे तोड़ देता है, वही सच्ची शक्ति का अधिकारी होता है।
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