बहुत समय पहले, सोने का हंस और परी एक छोटे से गाँव में एक गरीब लकड़हारा अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था। उनके पास बहुत कम साधन थे, लेकिन वे ईमानदारी और मेहनत में विश्वास रखते थे।
एक दिन, लकड़हारा जंगल में लकड़ी काट रहा था, तभी उसने एक घायल हंस को देखा। हंस की पंख सुनहरे रंग के थे, और उसकी चमक से पूरा जंगल रोशन हो रहा था। लकड़हारा ने सोचा, "यह कोई साधारण पक्षी नहीं है।" उसने हंस की मदद की और उसे घर ले आया।
लकड़हारे और उसके परिवार ने हंस की देखभाल की। कुछ दिनों बाद, हंस पूरी तरह ठीक हो गया और उड़ने के लिए तैयार था। जाते समय हंस ने कहा, "तुमने मेरी जान बचाई, इसलिए मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ।" वह हर दिन एक सुनहरा पंख छोड़ने लगा, जो परिवार की गरीबी को दूर करने में मदद करता था।
अब परिवार खुशी-खुशी रहने लगा। लेकिन एक दिन, लालच ने लकड़हारे की पत्नी के मन में जगह बना ली। उसने सोचा, "अगर हम सारे सुनहरे पंख एक ही बार में ले लें, तो हमें फिर कभी परेशान नहीं होना पड़ेगा।" उसने हंस को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने हंस को नुकसान पहुँचाना चाहा, हंस गायब हो गया।
परिवार को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। वे फिर से गरीब हो गए।
एक रात, लकड़हारे के बेटे ने एक सुंदर परी को सपने में देखा। परी ने कहा, "तुम्हारे माता-पिता ने गलती की, लेकिन तुम अब भी अच्छे और मेहनती हो। अगर तुम ईमानदारी से मेहनत करोगे, तो तुम्हारे जीवन में सुख-शांति आएगी।"
यह सपना सुनकर परिवार ने मेहनत और ईमानदारी से जीने का फैसला किया। उन्होंने हंस को कभी भूलने का प्रयास नहीं किया, और अपने काम में लग गए। धीरे-धीरे, उनकी स्थिति बेहतर होती गई।
यह कहानी सिखाती है कि लालच का परिणाम हमेशा बुरा होता है, और ईमानदारी और मेहनत से ही सच्चा सुख मिलता है।
0 Comments