सुलेमानी परी लोक – एक रहस्यमयी संसार
कहते हैं कि मानव लोक से परे सात अजाने लोक हैं – उजास लोक, चंद्र लोक, सुरभि लोक… और सबसे गूढ़, सबसे छिपा हुआ है सुलेमानी परी लोक। इस लोक का ज़िक्र आम लोककथाओं में नहीं मिलता, क्योंकि यह केवल उन्हीं आत्माओं को प्रकट होता है जिनका हृदय पहेलियों को सुलझाने का धैर्य रखता है और जिनकी आत्मा रहस्यमयी शक्तियों को स्वीकारने को तैयार होती है।
सुलेमानी परी लोक की पहचान
यह लोक काले और चमकदार धुएँ से घिरा माना जाता है, जैसे किसी काले रत्न – सुलेमानी – की चमक।
यहाँ चांदी जैसे वृक्ष होते हैं, लेकिन उनकी परछाईं काली होती है।
यहाँ की हवा में जादुई दलदल की सुगंध होती है – जिसे खोई आत्माओं की खुशबू कहा जाता है।
कहते हैं, जो भी इस लोक में प्रवेश करता है, उसकी असली परीक्षा उसकी इच्छाओं से होती है – क्योंकि सुलेमानी परियाँ मन की गहराई में छिपे लोभ, भय और सत्य को देख लेती हैं।
सुलेमानी परी लोक की महारानी
इस लोक की शासक को "रहस्यमयी महापरी सुलैना" कहा जाता है।
उसके नेत्र काले पत्थर जैसे, पर आवाज़ ऐसी कि सुनने वाला अपने अतीत की किसी भूली हुई स्मृति में खो जाता है।
वह सीधे आदेश नहीं देती… बल्कि पहेलियों में बात करती है, और केवल वही उसकी बात समझ पाता है जो अपने भीतर के रहस्यों को स्वीकारने की हिम्मत रखता हो।
यहाँ जाने का मार्ग
सुलेमानी परी लोक का द्वार धरती पर कहीं नहीं दिखता… क्योंकि यह द्वार बाहर नहीं, भीतर खुलता है।
जब कोई व्यक्ति गहरी रात्रि में किसी पुराने सुलेमानी पत्थर को अपने माथे पर रखकर ध्यान करता है…
और मन में बिना बोले एक प्रश्न उठाता है – ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर उसे दुनिया में कहीं नहीं मिला…
तभी एक काली रजत-रेखा उसके सामने प्रकट होती है, जो उसे उस लोक की दहलीज तक ले जाती है।
🌑 यदि तुम चाहो तो मैं इस रहस्यलोक की कथा को आगे बढ़ाते हुए उसकी गहराइयों तक ले जा सकता हूँ… जहाँ पहली बार एक मानव आत्मा ने सुलेमानी परी महल की चौखट पार की थी।
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