रानी परी की साधना | A long story of Queen Pari Sadhna

👑 रानी परी साधना की लंबी रहस्यमयी कहानी

बहुत समय पहले, हिमालय की एक रहस्यमयी गुफा में एक वृद्ध साधक रहते थे। वे गहन तपस्या और योग-साधना में रमे रहते थे। किंतु उनका मन सदैव एक अदृश्य रहस्य को खोजने के लिए तड़पता था—"रानी परी" की साधना। कहा जाता था कि जो कोई रानी परी को प्रसन्न कर ले, उसे अपार ऐश्वर्य, चमत्कारी शक्तियाँ और अमर्यादित वैभव की प्राप्ति होती है।

🌙 आरंभिक संकेत

एक दिन पूर्णिमा की रात, जब साधक ध्यान में लीन थे, उन्हें आकाश से मधुर घंटियों की ध्वनि सुनाई दी। आँखें खोलीं तो दूर-दूर तक स्वर्णिम आभा फैल रही थी। तभी उनके सम्मुख एक ज्योतिरूप स्त्री का स्वर प्रकट हुआ—
“हे साधक, यदि तुम सच्चे मन से मेरी साधना करोगे, तो मैं स्वयं तुम्हें दर्शन दूँगी। परंतु तुम्हारी परीक्षा कठिन होगी।”

साधक ने प्रण किया कि चाहे कैसी भी कठिनाई आए, वे रानी परी की साधना पूरी करेंगे।

🔮 साधना की प्रक्रिया

रानी परी की साधना के लिए साधक को सात रात्रियाँ लगातार एक विशेष विधि से साधना करनी थी।

उन्हें नदी के किनारे स्वर्णवर्णी दीपक जलाकर बैठना होता।

सात पीतल के कटोरों में दूध, शहद, केसर, मिश्री, गुलाबजल, कस्तूरी और चंदन रखना होता।

"ॐ ह्रीं रानी परीकायै नमः" मंत्र का 21,000 बार जप करना अनिवार्य था।

पहली रात से ही विचित्र घटनाएँ होने लगीं। कभी तेज हवाएँ चलतीं, कभी रात में अनजानी परछाइयाँ दिखतीं।

🕯️ परीक्षाएँ

तीसरी रात को साधक के सामने एक भयंकर दैत्य प्रकट हुआ और बोला—
“यह मार्ग तुम्हारा नहीं है, लौट जाओ, अन्यथा विनाश हो जाएगा।”
साधक निर्भय होकर मंत्र जपते रहे और दैत्य स्वयं अग्नि में विलीन हो गया।

पाँचवी रात को अचानक आकाश से पुष्पवृष्टि होने लगी। गंधर्वों के स्वर सुनाई दिए। साधक का ध्यान और प्रबल हो गया।

सातवीं रात सबसे कठिन थी। साधक के चारों ओर घोर अंधकार छा गया। मानो स्वयं कालरात्रि उतर आई हो। साधक ने आँखें बंद कर निरंतर मंत्रजाप जारी रखा। तभी एक अद्भुत प्रकाश प्रकट हुआ।

👑 रानी परी का प्रकट होना

उस प्रकाश से प्रकट हुईं—रानी परी। उनके मस्तक पर चंद्रमणि का मुकुट था, वस्त्र स्वर्ण के समान चमकते थे, और उनकी आँखों से दिव्य करुणा झलक रही थी। वे मुस्कराकर बोलीं—
“हे साधक, तुमने कठिन तपस्या और परीक्षाएँ पार कर ली हैं। अब मैं तुम्हें वर देती हूँ। तुम्हें ज्ञान, वैभव और सिद्धियों की प्राप्ति होगी। जब-जब तुम मुझे स्मरण करोगे, मैं तुम्हारे साथ रहूँगी।”

साधक ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की—
“माँ, मुझे केवल इतना आशीर्वाद दीजिए कि मैं मानवता की सेवा कर सकूँ।”

रानी परी ने प्रसन्न होकर उनके ललाट पर चूम लिया और कहा—
“अब से तुम्हारा हृदय दिव्य ज्योति से प्रकाशित रहेगा। तुम्हारी वाणी से जो भी निकलेगा, वह सत्य सिद्ध होगा।”

🌸 उपसंहार

उस दिन के बाद साधक महान संत के रूप में प्रसिद्ध हुए। लोग दूर-दूर से उनके पास आशीर्वाद लेने आने लगे। वे कहते—
“रानी परी की साधना किसी लालच से नहीं, बल्कि निर्मल हृदय और सेवा-भाव से करनी चाहिए। तभी वह स्वयं प्रकट होती हैं।”

RANI PARI KI SHADHNA


इस प्रकार, रानी परी की साधना अमर कथा बन गई, जो आज भी रहस्य और आस्था के पन्नों में चमकती है।

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