हिल हुल परी की रचना | Hill Hul Pari rachana

एक बार की बात है — समय की उन प्राचीन लहरों में जब पृथ्वी पर जादू और प्रकृति एक साथ साँस लेते थे, उस समय हिल हुल पर्वतों के बीच एक रहस्यमयी राज्य था — पारिजात लोक। यही वह जगह थी जहाँ से हिल हुल परी की रचना की अद्भुत कथा आरंभ होती है।

🌿 जन्म से पहले की गूंज

पारिजात लोक के राजा थे देवतरंग — जिनकी शक्ति हवा, जल और ध्वनि पर थी। रानी चन्द्रलेखा चाँदनी की आत्मा से बनी थीं, उनकी हँसी में मधुर संगीत था।
एक दिन रानी ने स्वप्न में देखा कि पहाड़ों के बीच से एक उजली किरण निकल रही है, और वह किरण लहरों की तरह नाच रही है — मानो कोई अदृश्य आत्मा हवा में खेल रही हो।

स्वप्न से जागते ही रानी ने राजा से कहा —

"यह कोई साधारण सपना नहीं, यह तो प्रकृति की पुकार है। कोई नई आत्मा जन्म लेने को तैयार है — जो पर्वत और पवन दोनों की दूत होगी।"


राजा ने अपने जादुई साधकों को बुलाया और आदेश दिया कि वे हिल हुल पर्वतों की चोटी पर जाकर उस किरण का स्रोत खोजें। जब साधक वहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा — हवा में नृत्य करती एक दिव्य आकृति, जो न तो पूरी तरह मानव थी न पूरी तरह आत्मा। उसकी आवाज़ से पर्वत गूँज उठे। यही थी — हिल हुल की पहली ध्वनि।

🌬️ रचना की प्रक्रिया

देवतरंग ने उस ध्वनि को अपने मंत्रों से बाँध लिया और वायु-मणि (Air Crystal) में स्थापित कर दिया। रानी चन्द्रलेखा ने उस मणि को अपनी चाँदनी की किरणों से स्पर्श किया, और तब उस मणि में से एक बालिका प्रकट हुई —
उसके बाल बादलों जैसे हल्के थे, आँखों में नीले झरनों की चमक थी, और उसकी हँसी में पहाड़ों की गूँज।

जब वह पहली बार बोली, तो चारों दिशाओं में प्रतिध्वनि हुई —

“हिल हुल... हिल हुल...”


और तभी से उसका नाम पड़ा — हिल हुल परी

🌸 परी का स्वभाव और शक्तियाँ

हिल हुल परी न हवा की संतान थी न जल की — वह दोनों का संगम थी।
उसकी शक्ति थी — ध्वनि से ऊर्जा उत्पन्न करना
जब वह नाचती, तो हवा संगीत बन जाती और जब गाती, तो फूलों से सुर झरने लगते।

वह बच्चों की हँसी से शक्ति पाती थी और दुखी लोगों के आँसू सूखा देती थी।
उसका प्रिय कार्य था — पर्वतों के बीच गूँज बनाना, ताकि हर यात्री जो खो जाए, उसकी आवाज़ लौटकर उसे दिशा दे।

🔮 पहली परीक्षा

एक दिन अंध-धुंध छाया राक्षस ने पारिजात लोक पर हमला किया। वह ध्वनि को निगल लेता था ताकि लोक मौन हो जाए।
जब सब कुछ शांत हो गया, केवल हिल हुल परी की साँसों की गूँज बची।
उसने अपनी सारी शक्ति एक स्वर में बाँध दी और कहा —

“हिल हुल... जीवन की पुकार है!”


उसकी आवाज़ से पर्वत फट गए, बादल गरज उठे, और राक्षस उसी प्रतिध्वनि में बिखर गया।
तब से वह ध्वनि-संरक्षिका (Guardian of Echoes) कहलाने लगी।

🌕 शांति का काल

युद्ध के बाद, हिल हुल परी ने पर्वतों के बीच एक गुप्त गुंजार-कक्ष (Chamber of Echoes) बनाया।
वहाँ हर उस आवाज़ की झंकार सुरक्षित रखी जाती है जो किसी ने प्यार या दया से निकाली हो।
कहा जाता है —

“जब कोई मनुष्य पहाड़ों में पुकारता है, तो जो आवाज़ लौटती है, वह हिल हुल परी की होती है।”


🌈 अमरता का वरदान

समय के देव कालव्रत ने उसे वरदान दिया कि जब तक संसार में कोई अपनी आवाज़ से किसी को पुकारेगा, हिल हुल परी जीवित रहेगी।
इसलिए आज भी जब पहाड़ों में प्रतिध्वनि गूँजती है, कहा जाता है —

Hill Hul Pari rachana


“वह हिल हुल परी की साँस है, जो हर आवाज़ को अमर बना देती है।”


क्या आप चाहेंगे कि मैं अगली कड़ी में लिखूँ — “हिल हुल परी और गुंजार-कक्ष का रहस्य”, जहाँ वह अपनी सबसे बड़ी शक्ति खो देती है?

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