एक समय की बात है, धूर्त शिकारी और दयालु परी एक घने जंगल के किनारे एक छोटा सा गाँव बसा हुआ था। उस गाँव में एक धूर्त शिकारी रहता था। वह बहुत चालाक था और अपने स्वार्थ के लिए कोई भी चाल चलने से नहीं हिचकिचाता था। वह अक्सर जंगल के जानवरों को धोखा देकर पकड़ लेता और उन्हें बेचकर पैसे कमाता था।
जंगल में जानवर हमेशा उसके डर से सहमे रहते थे। लेकिन उसी जंगल में एक दयालु परी भी रहती थी। वह जानवरों की मदद करती थी और उन्हें शिकारी से बचाने की हर संभव कोशिश करती थी। परी के पास जादुई शक्तियाँ थीं, जिनसे वह जानवरों को सुरक्षा प्रदान करती थी।
शिकारी की चालाकी
एक दिन शिकारी ने जंगल में बड़े जाल बिछाए और कुछ मीठे फल उन जालों के पास रख दिए। उसने सोचा कि जानवर इन फलों की महक से खिंचकर आएंगे और जाल में फँस जाएंगे। कई जानवर उस ओर जाने लगे, लेकिन परी ने समय रहते यह चालाकी देख ली।
परी की सहायता
परी ने अपनी जादुई शक्तियों से उन फलों को जहरीला दिखा दिया। जब जानवर उन फलों के पास पहुंचे, तो उन्होंने उन्हें सड़ा-गला और बदबूदार पाया। जानवर समझ गए कि यह किसी खतरे की ओर इशारा है, और वे वहाँ से दूर चले गए। शिकारी का जाल खाली रह गया।
शिकारी का सामना परी से
शिकारी ने यह देखा और गुस्से में परी को ढूंढने लगा। वह सोचता था कि कोई जादू से उसकी योजनाओं को बिगाड़ रहा है। एक दिन उसे परी मिल गई।
शिकारी ने उसे अपने जाल में फँसाने की कोशिश की, लेकिन परी ने अपनी जादुई शक्तियों से शिकारी को एक पत्थर में बदल दिया।
सबक
शिकारी की चालाकी और स्वार्थ ने उसे आखिरकार सबक सिखा दिया। जंगल के जानवर खुशी से रहने लगे, और दयालु परी ने उनकी देखभाल करना जारी रखा।
कहानी का नैतिक:
स्वार्थ और चालाकी से दूसरों को नुकसान पहुँचाने वाले अंत में खुद बर्बाद हो जाते हैं। दया और अच्छाई हमेशा विजयी होती हैं।
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